तेनालीराम की जीवनी

तेनालीराम कृष्‍ण , जिन्‍हे "विकटकवि" के रूप मे जाना जाता है, का जन्‍म 16 वी शताब्‍दी में तेनाली नामक गॉंव मे हुआ था। उनके पिता का नाम गरलापति रमय्या था, जो तेनाली गॉंव के मंदिर के पुजारी थे। उनकी माता का नाम लक्ष्‍मम्‍मा था। कहॉं जाता है कि उनका वास्‍तविक नाम रामलिंग था और वे शैव धर्म के थे। लेकिन उन्‍होने वैष्‍णव धर्म में परिवर्तित होकर अपना नाम रामकृष्‍ण कर लिया था। जब वह युवावस्‍था में थे तब उनके पिता की मृत्‍यु हो गयी थी। उसके बाद वह अपनी माता के साथ अपने मामा के यहॉं रहने लगे थे।

बचपन से ही तेनाली में ज्ञान इकहट्टटा करने की लालसा थी इसी दौरान उनकी मुलाकात एक साधू से हुई जिन्‍होने तेनाली को मॉं काली की पूजा करने की सलाह दी। उसके बाद वह भागवत मेला की एक प्रसिद्ध मंडली मे शामिल हो गये।

एक दिन जब मंडली राजा कृष्‍णदेव राय के दरबार मेंं प्रदर्शन कर राजा का मन जीत लिया। उसके बाद राजा ने उन्‍हें अपने पास बुलाया तथा तेनालीराम ने उन्‍हें अपने जीवन की सारी कहानी वया कर दी। राजा को उनके इस स्‍वभाव ने बड़ा आकर्षित किया तथा राजा ने उन्‍हें अपने अष्‍टकवि में हास्‍‍य कवि के रूप में जगह दी।

तेनालीराम अपनी बुद्धिमत्‍तता के लिए प्रसिद्य थे। उन्‍होने पांडुरंग महाकाव्‍य लिखा था। जिसे आज तेलगु साहित्‍य के पॉंच महाकाव्‍यो में जगह प्राप्‍त है। 

कहा जाता है की यहाँ यम और विष्णु के दासो के बीच एक विवाद भी हुआ था। तेनालीराम ने पांडुरंगा के भक्तो की बहुत सी कहानियो को अपने काव्य में शामिल किया है, और उन्होंने पांडुरंग महात्म्य की थीम भी स्कन्दपुराण से ही ली थी। साथ ही “निगमा सर्मक्का” नाम के काल्पनिक चरित्र की रचना भी तेनालीराम द्वारा ही की गयी थी और उन्होंने नाम दिए बिना ही उनके आस-पास बहुत सी कहानियो की रचना कर दी। ‘चतुवु’ के नाम से उन्होंने बहुत सी उपन्यास कविताओ की भी रचना कर रखी है।
तेनालीराम जब रजा कृष्णदेवराय के दरबारी कवि थे तो उन्हें लोकनायक के रूप में प्रसिद्धि मिली लेकिन उसी समय उन्होंने धर्म पर कुछ गंभीर रचनाये भी की थी। उनके द्वारा रचीं कविताओ में से तीन कविताये हमें आज भी देखने मिलती है।
उनकी पहली कविता, शैव शिक्षक उद्भट के बारे में उद्भटाराध्य चरितामु थी, जो पलाकुरिकी सोमनाथ की बसवा पुराणं पर आधारित थी। उद्भटाराध्य में उन्होंने वाराणसी की पवित्रता का भी उल्लेख किया है। तेनाली रामकृष्ण का शैव धर्म के प्रति लगाव होने की वजह से, उन्हें तेनाली रामलिंग कवि के नाम से भी जाना जाता था।
जवकि वैष्णव धर्म पर भी उनका गहरा विश्वास था, जो सुंदर उदाहरण हमें उनकी रचना पांडुरंग महात्म्य में देखने मिलता है।  

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